गुरुवार, 23 जुलाई 2009

बडे खामोश रहते हैं अभी हम,


बडे खामोश रहते हैं अभी हम,
सुना है लोग अब भी बोलते हैं .


बडे दिल से लगाकर दिल यहाँ पर ,
सुना है लोग अब दिल तोड़ते हैं


कभी अमुआ की अमराई पे कोयल ,
कुहू कुहु के गाती गीत थी पर ,

'
सुबह की शाख पे बैठी कोयल है ,
नगर में गीत कागा छेडते हैं.


धनक खिलती दिखी थी कल जहां पर ,
आज मरघट सा वो पनघट रुआंसा .


जो बुझाया करे थे प्यास कल तक,
आज वोही क्यों प्यासा छोड़ते हैं


वो सागर रूप के हैं होंगे होंगे ,
कमल तो झील का होता सदा है


हमें अपना बनाने के भरोसे ,
दिला कर खुद भरोसा तोड़ते हैं .


किसी मन्दिर की चौखट पर जलेगा ,
जले गा या किसी मरघट पे फिर भी ,


रहेगा दीप तो हर हाल दीपक ,
जला कर मन-जलाता हैं छोड़ते हैं .
deepzirvi9815524600

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