गुरुवार, 20 अगस्त 2009

फिर वतन से ...


[१ ]
फिर वतन से ...
फिर वतन से आई महकी-महकी हवा ..
 
मन-चमन में छाई महकी-महकी हवा ..
 
इस हवा में है बहनों का निश्छल मोह
 
इस हवा में है घुली माँ की आशीष
 
इस हवा में है बापू की पगडी की चीख .
 
इस हवे में मेरी  भाभियों के मजाक ;
 
राह  तकते हुए सिधूरी सूरज की टीस;
 
इस हवा में है भाई -बांधव की चाह .
 
फिर वतन से आई महकी-महकी हवा ..
 
मन-चमन में छाई महकी-महकी हवा ..
 
दीप जीर्वी

 

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deepzirvi9815524600
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