रविवार, 15 नवंबर 2009

-- कल आज और कल



-- कल आज और कल (दीप जीर्वी  )
आज
 जो हालात हैं 
वक्त की मेहरबानी
कल न हम ऐसे थे न हालात
और
न ही कल भी
आज के हालात होंगे .
कल था काला
भयावह सपने की तरह
जिसके
खत्म होते ही
खत्म हुई
न उम्मीदी,
 निराशा,
आज
 विवशता का
नाम ओ निशान नही .
आज सिखाया
गुजरे कल ने
सम्भलना
----
आने वाले कल
सभी देखेंगे
कि
तब का आज
गुजरे कल के आज से
कहीं अधिक उज्ज्वल होगा
.
दीप जीर वी 
 





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