सोमवार, 13 जुलाई 2009












दीप्काव्यन्जली , अनुभूतियों को शब्दों का कलेवर दे कर कुछ कहने कि आकांक्षा है कविता को मन में धारण करने वाले सुधि जनो का हार्दिक अभिंदन



१।
मेरा दिलबर हसीन नही बेशक
कोई उस सा कहीं नहीं बेशक


वो कही की नही है शेह्जादी,
वो है दिल की मेरे खुशी बेशक



आँखें उसकी शरबती सही ,

उस की आँखों में हूँ में ही बेशक



उसकी आवाज़ में खनक सही ,

करती है वो मेरी कही बेशक


दीप बन कर कभी जो मैं आया ,

ज्योति बन कर के वो जली बेशक

दीप जीरवी ९८१५५२४६००



2
दिल दिल है शीशा नहीं शीशे से भी नाजुक दिल
ये दिल दिल का साथी है ये दिल दिल का है कातिल

यार तुम्हारी बात कहू यार तुम्ही तो हो मेरे

तुम्ही हो जीवन मेरा ,तुम्ही जीवन का हासिल

तेरे इदल की कहता हू तेरे दिल की सुनता हु

मेरे दिल की जाने , क्यों हो मुझ से तू गाफिल b






3
अकेला नही हूँ पर तन्हा हूँ
दरया होकर भी प्यासा हूँ
मरती चिडिया देखूं रो दूँ ,
बेशक मै सब में हंसता हूँ
तू सेठानी बेशक बेशक ,
मैं याचक दर पर आया हूँ
दाज के लिए दरवाजे पर
बैठी बेटी का पापा हूँ
बूढे बाप के खाली बेटे की
लाश उठाते में हाफा हूँ
श्वासों की हूँ आवागमन मैं
लोथ हूँ , लाश हूँ एक गाथा हूँ








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