----काव्य अंजुली----- दीप जीरवी
सोमवार, 13 जुलाई 2009
पनघट पनघट वो दिलबर को ढूंढे है ,
पनघट पनघट वो दिलबर को ढूंढे है ,
मर घट मरघट उस को भी है ढूंढ रहा..
दीप जीरवी
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