सोमवार, 26 सितंबर 2011

...वतन वालो !फिर न गिला कीजिएगा

अमीर-ए-शहर ने सोचा है अब के ,गरीबों के दिल की दुआ लीजिये गा ;

मयार-ए-गरीबी बदल कर शहर में ,सभी को अमीर अब चलो कीजिए गा . 

बड़ा दिल है इनका ,बड़ा हौसला है   ,कि आकाश पाताल सा फासला जो  ;

मिटा कर बनाएं तखय्युल क़ी खिचडी ,औ चाहें सभी को खिला दीजिए गा . 

वो तन के जो नंगे ;हैं भूखे ;भिखारी ;जिन्हें खुद बताते रहे ये :बीमारी ;

जिन्हें मार डाला था कामों से अपने ,कहें ये उन्हें अब जला दीजिए गा .

न तन देश का ये समझते हैं अपना ,न 'मन देश का है' ये माना इन्होंने ;

'मगर' के सगे हैं ये मक्कार लोमड ,'समझकर' इन्हें बस मिला कीजिए गा .

जो देखा जो समझा बताया है हमने ,फर्ज़ था हमारा निभाया है हमने ;

मेरी बात को यूं हवा में उड़ाकर,वतन वालो !फिर न गिला कीजिएगा 
दीपजीरवी
२६-९-११