सोमवार, 26 सितंबर 2011

मैं भला खुशबू को बुत कर के दिखाऊँ कैसे



इश्क की ज़ात बताएं तो बताऊँ कैसे 
मैं भला खुशबू को बुत कर के दिखाऊँ कैसे .

मैं तुझे और तेरी अदा को जलवे को 

अपनी पलकों में कहो तो यूं समाऊँ कैसे .

रौशनी इश्क गली में नहीं होगी ऐसे ;
दिल जिगर जान कहो मैं भी जलाऊँ कैसे .

पारा है सोच तेरी ,पारसा खुद तू भी नहीं ;

अपना हमराज़ सुनो तुमको बनाऊँ कैसे .

ओ हवा मुझको बता तेरा इरादा क्या है ;

मै तेरे सामने मन दीप जलाऊँ वैसे .. 
दीपजीर्वी 
२७-९-२०११