----काव्य अंजुली----- दीप जीरवी

बुधवार, 19 अक्टूबर 2011

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Posted by ਸ਼ਬਦਾਂ ਦਾ ਸਰਨਾਵਾਂ at 6:12 pm

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मैं तुझे ओढ़ता बिछाता रहू तुम से तुम को सनम चुराता रहू . तू मेरी ज़िन्दगी है जान.ए.गज़ल ज़िन्दगी भर तुझे ही गाता रहू. तुम यूँही मेरे साथ साथ चलो , मैं जमाने के नभ पे छाता रहू . गुल जो पूछे कि महक कैसी कहो? तेरी खुशबु से मैं मिलाता रहू . ऐ मुहब्बत नगर की देवी सुनो , तेरे दर पर दीप इक जलाता रहू

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डॉ हरी राम आचार्य जी की रचना "बिन पानी सब सून " गूँज रही रहीम की बानी ,जीवन का मतलब है पानी पानी गये कभी न उभरे : मोती ,मानुष, चून रे भय्या बिन पानी सब सून ,रे भय्या बिन पानी सब सून ॥ यम बनकर आया है मौसम ,निगल गया रिमझिम की सरगम पानी बिन हर छोर उदासी ,सूखी झील नदी तक प्यासी । पनघट गुम्म सुम्म घडे रुआंसे ,,मेहनत भूखी dungr प्यासे। भादों सूखा सावन सूखा ,,ऋतू का हर सम्वेदन सूखा सूखे की सब राम कहानी ,बिन पानी आंखों में पानी , काल खडा जिन्दा फसलों को,रहा भाड़में भून रे रे भय्या बिन पानी सब सून, रे भय्या बिन पानी सब सून । । पानी जग की पेहली रचना ,पानी बिन jivn मृगतृष्णा पानी रहा सृष्टि से पहले पानी में जग होगा प्रलय पानी ही से निकली धरती बिन पानी बन जाए परती पनपी पानी तीर सभ्यता पानी से संवरी मानवता देते प्राण वीर बलिदानी चमके जब खंडे का पानी पानी की रक्षा को रन में गरमाता है खून रे रे भय्या बिन पानी सब सून पानी बादल पानी सागर , पानी बिन रीती हर गागर । पानी तन की तपन मिटाए पानी मन में गीत जगाय. पानी बिन हर मोती कंकर, पानी बिन ऑंखें हैं पथर . पर्व तीर्थ होली दीवाली , है सब पानी की हरयाली ' पानी बिन रोटी तक दूभर , बिन पानी सब कुछ है बंजर पानी बिन सब बात सलोनी लागे बडी अलून,बिन पानी सब सून रे भय्या बिन पानी सब सून रे भय्या । आब आबरू आबोदाना सब कुछ पानी का अफसाना समझो अरे सियासत दानो पानी की कीमत पहचानो उतरे जब चेहरे से पानी कौन न होता पानी पानी । जीता व्ही राष्ट्राभिमानी ,जिसने रखा अपना पानी कुर्सी दौलत सब बेमानी ,सच्चा धर्म है केवल पानी । पानी गये अकारथ होती ये मानुष की जून बिन पानी सब सून रे भय्या बिन पानी सब सून रे भय्या डॉ हरी राम आचार्य जी की रचना "बिन पानी सब सून " visit my BLOGhttp://www.blogger.com/profile/02014993718109766141

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