शनिवार, 3 सितंबर 2011

गज़ल

कल रात हम से मिलने, आए वो छुप-छुपा के
बिजली से डर गए थे, लिपटे वो सकपका के .
इक बारगी तो चौंका, देखा वो सामने है
सोचा ,महकता झोंका, ,आता है कब बता के .
ऑंखें झुकी-झुकी सी, जुल्फों के मेघ काले
उस चाँद को थे बैठे ,अपने तले छुपा के .
सांसों में घुल गई थी ,संदल ही बस हमारे ;
मुझे प्यार उसने बख्शा, जब बांसुरी बना के .
लिपटे रहे वो हमसे;जैसे लता तरु से ;
बोले हमे है रहना ,सब फासले मिटा के 
-दीप जीरवी