शुक्रवार, 9 सितंबर 2011

मोल -हीन सब यह ,बिन 'श्यामल'

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दीप जीरवी
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मृदंग -झांज -मंजीरा -पायल
मन घायल तो सब कुछ घायल
रूआंसे रूआंसे सब हों
गुल-तितली ,गुलशन और कोयल ..
लाख घटाएँ गरजें बरसें ;
चातक तो  पीवे स्वाति जल .
चाँद -घटा- बिजली और बादल;
बिन सांवरिया सब कुछ बेकल .
मन -दर्पण में कोई न झांके ;
हर कोई देखे तन मांसल .
यह फैशन है वो है परचम;
यह भी आंचल,वह भी आंचल
राधा-मीरा-रुक्मणी -भामा;
मोल -हीन सब यह ,बिन 'श्यामल'
-दीप जीरवी