गुरुवार, 3 नवंबर 2011

आखिर हम तुम क्यों लिखते हैं ?



आखिर हम तुम क्यों लिखते हैं ?
महंगा बिकने की खातिर ?
अलग सा दिखने की खातिर ?
वाह वाह ,वाह वाह पाने को?
कोई दिल धड़काने को ?
आखिर हम तुम क्यों लिखते हैं ?
-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०--०--०-
चौकी दारा करने को ?,
धारा के उलट चलने को ?
इन्कलाब सा लाने को ?
पद प्रतिष्ठा पाने को?
आखिर हम तुम क्यों लिखते हैं ?
-०-०-०-०-०-००-०--०--०-०-०-
अख़बारों में छपने को ?
दरबारों में घुसने को?
या फिर ईनामों की खातिर ;
ये जोड़ तोड़ तिकडम जी भर .
आखिर हम तुम क्यों लिखते हैं ?
-०-०-०-०-०-०-०-०-०-००-०
या दिल की दुनिया का  हाकम;
दिल करता है हम पर शासन.
उसका हर हुकुम बजाने को
लिखते हैं हम जी जाने को?
आखिर हम तुम क्यों लिखते हैं ?
-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-
दीप जीरवी