रविवार, 11 दिसंबर 2011

महक उठेगी रात की रानी

महक उठेगी रात की रानी

तेरी वेणी में सज कर ही.

चंदनिया शीतल हो गी पर

तेरी काया से लग कर ही .





सुमन सुशोभित हों उप वन में

तेरे आँचल के छूते ही

मानस तल पर विविध छटाएं

बिखरें तुम को छू पल भर ही .



मन मयूर करे नृत्य सुहाना

पुलकित होता हर्षाता है

जब छाते हैं कुंतल

बस तेरे मुख के नभ पर ही



मन की सीमा से आगे भी

देखो कई असीम गगन हैं

सोच विहग है आतुर पल पल

मेरा मन सुख के पथ पर ही .

दीप ज़ीरवी 9815524600